वैशाखी महोत्सव पर निबंध (Essay on Vaisakhi Festival) – पंजाब में प्रसिद्ध त्योहार
‘‘नववर्ष का आगाज़ वैशाखी, है आपस का प्यार वैशाखी।
यह पावन त्योहार वैशाखी, जीवन का आधार वैशाखी।
कृषकों का उल्लास वैशाखी, भारत का मधुमास वैशाखी।
ख़ालसा का विकास वैशाखी, शहीदों का इतिहास वैशाखी।’’
भारत में हर साल अनेक प्रकार के उत्सव और त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। यही त्योहार भारतीयों को एक सूत्र में बाँधते हैं। कृषि से संबंधित यह त्योहार गेहूँ की फसल की कटाई शुरू करने की खुशी में मनाया जाता है। यह अप्रैल अर्थात वैशाख महीने में संक्रान्ति में मनाया जाता है। इस महीने पंजाब में गेहूँ की फ़सल पक जाती है। अपनी मेहनत का सुनहरी फल देखकर किसान खुशी के साथ झूम उठता है। लोग खुशी में भँगड़ा डालते हैं। जब पृथ्वी सूर्य के इर्द-ग़िर्द एक चक्कर पूरा करके दूसरा चक्कर आरम्भ करती है, उसी दिन वैशाखी होती है। तभी नया देसी साल शुरू होता है। स्कूलों का सत्र भी अप्रैल महीने (वैशाख मास) से ही आरम्भ होता है। वैशाखी के दिन महात्मा बुद्ध को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। 1699 ई. को इस दिन आनन्दपुर साहिब में गुरू गोबिंद सिंह जी ने ‘खालसा पंथ’ की स्थापना करके अनेक जातियों के भेदभाव को मिटाकर एक सूत्र में पिरोया था। पाँच प्यारों को अमृत छकाया और सिंह सजाए थे। इसी दिन सन् 1919 ई. में अंग्रेज़ हाकिम जनरल ओडवायर ने जलियाँवाला बाग में निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलाई थी। उन्हीं शहीदों की याद में वैशाखी के दिन श्रद्धाँजलि समारोह आयोजित किए जाते हैं। वैशाखी किसानों का पर्व है। उनकी वर्ष भर की मेहनत सफल होती है। उनके पैरों में अपने आप थिरकन आ जाती है। किसान अपनी फ़सल को पक कर तैयार हुई देख खुशी से झूम उठते हैं:
‘‘ओ जट्टा आई विशाखी,
फ़सलां दी मुक गई राखी।’’
वैशाखी के दिन पंजाब में कई स्थानों पर मेले लगते हैं। आनन्दपुर साहिब का वैशाखी का मेला पंजाब भर में प्रसिद्ध है। लोग रंग-बिरंगे नये कपड़े पहनकर मेला देखने आते हैं। इस दिन हर गाँव हर शहर में चहल-पहल होती है। मिठाइयाँ और खिलौनों की खरीदारी करके ख़ुशी से झूमते हुए लोग शाम को लौटते हैं। इस दिन पशुओं की मंडियाँ लगती हैं। स्थान-स्थान पर कुश्ती मुकाबले करवाये जाते हैं।
इस दिन नए कार्य आरम्भ किए जाते हैं। पुराने कामों का लेखा-जोखा किया जाता है। दुकानदार नये बही खाते शुरू करते हैं। इस दिन लोग गँगा-यमुना आदि पवित्र नदियों और सरोवरों में स्नान करते हैं। लोग यथा योग्य दान-पुण्य भी करते हैं। देसी वर्ष के आरम्भ में लोग मंदिरों-गुरूद्वारों में मानव-कल्याण की कामना करते हैं।
Contributed by: Sudha Jain
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