ऋतुराज, फूलों का त्योहार वसंत पर निबंध – Essay on Vasant Festival in Hindi
Essay on Vasant Festival – भूमिकाः संसार में ऐसा कोई भी देश नहीं जहाँ वर्ष में छह ऋतुएं आती हैं और अपने-अपने समय पर आकर अपना रंग दिखाती हैं और प्रकृति का श्रृंगार करती हैं। भारत में हर ऋतु अपने समय पर आकर सबके मन में नई उमंग और काम करने का उत्साह भरता है। इसलिए भारत की भूमि को स्वर्ग के समान सुंदर माना जाता है।
‘‘रंग-रंग की ऋतुएं आँगन में आती,
मेरे भारत को रंगों में रंग जाती।’’
हेमंत, शिशिर, बसंत, ग्रीष्म, वर्षा और शरद। इनमें से बसंत ऋतु फाल्गुन-चैत्र मास/फरवरी-मार्च महीने में आती है। इन दिनों में न अधिक गर्मी पड़ती है और न अधिक सर्दी। दिन-रात लगभग बराबर होते हैं। इससे पहले शरद ऋतु में कड़ाके की सर्दी पड़ती है और इसको धरती की हरियाली सहन नहीं कर पाती। हेमंत ऋतु में फूल मुरझा जाते हैं, पत्ते पीले पड़ जाते हैं। पतझड़ होता है तथा पत्ते झड़ जाते हैं। इसके बाद ऋतुराज बसंत का आगमन होता है।
आगमन: बसंत, जिसमें संपूर्ण प्रकृति सौंदर्यमयी हो उठती है, पेड़ों पर नए-नए पत्ते निकल आते हैं, फूल खिल उठते हैं। इस ऋतु में सरसों के फूल पूरे यौवन पर होते हैं। आम के पेड़ों पर सुनहरा बौर आ जाता है तथा कोयल की कूक सुनाई देने लगती है। उद्यानों में रंग-बिरंगे फूल खिलकर अपनी सुंदरता बिखेरते हैं। भँवरे और रंग-बिरंगी तितलियाँ उनके आस-पास मँडराने लगती हैं। सरसों के फूलों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानों पृथ्वी ने पीली चादर ओढ़ ली हो। अनार, कचनार, ढाक आदि के फूलों से प्रकृति का सौंदर्य निखर उठता है। इस समय चारों और हरियाली छा जाती है। बसंत ऋतु सभी ऋतुओं में से उत्तम एवं प्रिय ऋतु मानी जाती है। इसके आगमन पर चारों ओर प्रसन्नता छा जाती है। इसलिए इस ऋतु को ऋतुराज, बसंत, मधुऋतु फूलों का त्योहार और कुसुमाकर भी कहते हैं।
‘‘महक रही है डाली-डाली, धरती की है छटा निराली,
कोयल का भी मन हर्षाया, आया सखी बसंत आया।’’
बसंत पंचमी के त्योहार का इतिहास: बसंत पंचमी का पौराणिक संबंध त्रेता युग के प्रभु राम से है जब प्रभु राम शबरी के पास गए थे, तब बसंत पंचमी का ही दिन था।
इस दिन वीर हकीकत राय ने हिंदू धर्म की बलिवेदी पर अपने प्राणों की बलि दी थी। यह पावन दिन शहीदी मेले के रूप में मनाया जाता है। हकीकत राय को नवाब ने इस्लाम धारण करके मुसलमान बन जाने को कहा लेकिन हकीकत राय ने मानने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप 1798 को उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया।
महाराजा रणजीत सिंह भी बसंत पंचमी के पर्व पर दरबार सजाया करते थे। तभी तो बसंत पंचमी का त्योहार हर धर्म के लोगों में बड़ी उत्सुकता और उल्लास से मनाया जाता है।
मनाने का ढंग: यह त्योहार समस्त भारत में हर्ष एवं उल्लास से मनाया जाता है। इस दिन लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं, सरस्वती पूजन करते तथा पीला हलुआ चावल बाँटते और खाते हैं। स्थान-स्थान पर बसंत मेलों का आयोजन किया जाता है। बसंत ऋतु में कवियों की भावना-शक्ति भी बढ़ने लगती है। इसलिए इन दिनों विशेष कवि सम्मेलन करवाये जाते हैं।
पंजाब में शहर पटियाला, लुधियाना, जालन्धर एवं अमृतसर में बसंत पंचमी के त्योहार की निराली छटा देखने को मिलती है। इस दिन शहरों और गाँव में पतंगबाजी की जाती है। लाउडस्पीकर इत्यादि लगाकर लोग रंग-बिरंगी पतंगें उड़ाते हैं। एक-दूसरे की पतंग काटने की होड़ में जो उत्साह होता है वह देखते ही बनता है। आसमान में उड़ते पतंग अद्भुत दृश्य पेश करते हैं।
प्रकृति में बदलाव: बसंत पंचमी मूलरूप से प्रकृति का उत्सव है। इसे आनंद का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन से धार्मिक, प्राकृतिक तथा सामाजिक जीवन के कामों और आध्यात्मिक दृष्टि से साधना आरंभ करने का भी पर्व है। इस ऋतु में मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षी भी इस ऋतु में खुशी से उछलते, कूदते और नाचते हैं। सभी प्राणियों, जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों में नवजीवन का संचार हो जाता है।
उपसंहार: बसंत ऋतु को सबसे उत्तम ऋतु माना गया है क्योंकि इस ऋतु में ने अधिक सर्दी होती है न अधिक गर्मी। बसंत ऋतु सौन्दर्य, स्वास्थ्य एवं उल्लास की ऋतु है इसलिए इसे ऋतुराज कहना भी उचित है।
बसंत को लेकर प्रसिद्ध कवि ने ख़ूब कहा है:
‘आई बसंत, पाला उड़ंत।’
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