रक्षा बंधन पर हिंदी में निबंध (Essay on Raksha Bandhan)
रक्षा-बन्धन भारतीय लोक-जीवन की सुन्दर परम्परा का पवित्र एवं प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भाई-बहन के पवित्र स्नेह का प्रतीक है। प्राचीन आश्रमों में स्वाध्याय के लिए द्विज (ब्राह्मण) नया जनेऊ धारण करते थे। जनेऊ के तीन तारों में जनेऊ बांधी जाने वाली ब्रह्म गांठ उन्हें अज्ञान रूपी गांठ को सुलझाने का प्रण याद दिलाती रहती थी। यह पावन पुनीत कार्य किसी नदी, जलाशय या वन में सम्पन्न होता था। इसे उपाकर्म संस्कार कहते थे। यज्ञ के बाद ‘रक्षा-सूत्र’ बाँधने की प्रथा के कारण इसका नाम ‘रक्षा-बन्धन’ लोक-प्रचलित हो गया। संस्कृत के रक्षा शब्द को हिन्दी में ‘राखी’ कहा जाता है। यह श्रावणी पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसलिए इसे ‘श्रावणी’ या ‘राखी’ भी कहते हैं। पुरोहित अपने यजमानों के हाथ में मौलि बाँधकर आशीष देते हैं।
राखी से जुड़ी एक ऐतिहासिक घटना के अनुसार जब बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया तो वहाँ की क्षत्राणी-राजपूतानी रानी कर्मवती ने हुमायूँ (मुगल सम्राट) को राखी भेजकर रक्षा के लिए सहायता माँगी थी। तब हुमायूँ ने हिन्दू-मुसलमान के भेदभाव को भुलाकर राखी के धागे का मूल्य समझा और उसकी रक्षा की थी।
रक्षा बन्धन के दिन भाइयों के दूर होने पर बहनें डाक से राखी भेजती हैं। यदि भाई-बहन आस पास हों तो वे स्वयं आकर राखी बाँधती हैं। जिस व्यक्ति की अपनी बहन नहीं होती, वह अपने रिश्ते की किसी बहन से राखी बँधवाता है। रक्षा बन्धन के दिन देशवासी राष्ट्रपति-प्रधानमन्त्री आदि को राखी बाँधते हैं। जिनके कंधे पर देश का दायित्व है।
बहनें ईश्वर से अपने भाई की रक्षा के लिए मंगलकामना करती हैं। उसके बाद भाई का मीठा खिलाती हैं। वे अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसके हाथ पर राखी बाँधती हैं। भाई बहन से राखी बँधवाकर उसकी रक्षा का भार अपने ऊपर ले लेते हैं। भाई अपनी बहनों को इस दिन धन और उपहार देते हैं।
यह त्योहार सादगी और पवित्रता का प्रतीक है। इस त्योहार का उद्देश्य नारी समाज की सुरक्षा होना चाहिए। आज के इस प्रगतिशील समय में इस बात की आवश्यकता है कि प्रत्येक भाई-बहन इस त्योहार का परम्परागत पालन करें। बहनों को केवल उपहार प्राप्ति की इच्छा से ही राखी बाँधने की लालसा नहीं होनी चाहिए। भाई की जेब तथा बहन की इच्छा में सन्तुलन ज़रूर होना चाहिए। भाई को भी नाक बचाने के लिए सामथ्र्य से ज़्यादा ख़र्च करके बहनों को उपहार नहीं देना चाहिए। उसे न सिर्फ़ अपनी बहन, बल्कि समाज में हर स्त्री, कमज़ोर व्यक्ति और मातृभूमि की रक्षा के लिए तत्पर रहना चाहिए। यह विचार देश की एकता और विश्व-बन्धुत्व की भावना के प्रसार-प्रचार में लाभकारी होगा।
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